निरंकारी समागम "गजल" समा जाते हैं सारे ग़म , निरंकारी समागम में ।
ग़ज़ल
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*निरंकारी समागम*
समा जाते हैं सारे ग़म , निरंकारी समागम में ।
जैसा सोच कर के है बनाया,रब ने ये दुनियां,
नज़ारा हू ब हू वैसा,
जहां आदम के सज़दे में, झुके हैं सिर फरिश्तों के,
ख़ुदा का बा-अमल फ़रमान, निरंकारी समागम में ।।
मुहब्बत का मुजस्मा हर तरफ़, चाहे जिधर देखो,
समां इंसानियत का यूँ , निरंकारी समागम में ।।
जहां अमन-एकता-भाईचारे की,सुंदर-सुंदर लहरें,
उमड़ता प्यार का सागर , निरंकारी समागम में ।।
हर गुरु पीर पैग़म्बर और अवतारों के सपनें ,
हैं साकार हो उठते ,
निरंकारी समागम में ।।
जिस चतुर्भुज रूप की चर्चा है ग्रंथों में ,
वो विराट होता है प्रकट ,
निरंकारी समागम में ।।
जहां शिव की जटा से ज्ञान की गंगा निकलती है,
अनेकों दुर्लभ फल मिलते, निरंकारी समागम में ।।
जहां पे लाखों-लाखों *पुष्प*, महकती भक्तिमय बगिया,
चलो और ले चलो सबको , निरंकारी समागम में ।।
🙏प्यार से कहना जी🙏
🙏धन निरंकार जी🙏
🙏प्यार से कहना जी🙏
🙏धन निरंकार जी🙏
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