Nirankari Vichar. निरंकारी विचार "ब्रह्म की प्राप्ति, भ्रम की समाप्ति"


Nirankari Vichar. निरंकारी विचार "ब्रह्म की प्राप्ति, भ्रम की समाप्ति"

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Nirankari Baba Hardev Singh ji Maharaj

ब्रह्म एवं भ्रम मन की दो अवस्थाएं हैं, यदि तत्ववेत्ता तत्वदर्शी पूर्ण सत्गुरू से ब्रह्मज्ञान प्राप्त करके एक गुरसिख पूर्णतः समर्पित होकर गुरू की शिक्षा या सिखलाई को हूबहू अमली जामा दे देता है तो वह पूर्णतः ही ब्रह्ममय हो जाता है। इसीलिए रब्बी वाणी में भी कहा गया है कि:

"ब्रह्मज्ञानी का सकल आकार, ब्रह्मज्ञानी आपहु निरंकार"

स्वामी विवेकानंद जी का वो चर्चित संवाद जोकि एक शिक्षक के साथ था जिसमें शिक्षक अपने छात्रों से ठंड एवं अंधेरे के विषय पर सवाल पूछता है छात्रों ने तरह तरह के जवाब दिए। जब स्वामी विवेकानंद जी की बारी आई तो उन्होंने कुछ अलग ही उत्तर दिया जोकि कुछ इस तरह से था:
ठंड एवं अंधेरा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कोई परिभाषित शब्द नहीं हैं। पर हां तापमान की बहुत अधिक कमी ठंड की परिचायक है और प्रकाश की बहुत अधिक कमी अंधेरे का कारण। ऐसे ही भ्रम का अपना कोई वजूद नहीं है आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ब्रह्मज्ञान की कमी ही भ्रम हैं, अज्ञानता है। अतः पूर्ण सत्गुरू ब्रह्म बख्शीश देकर मानसिक अवस्था में परिवर्तन करता है और जो अज्ञानता या भ्रमों की जमी परतों को खुरच कर साफ कर देता है और मन में ब्रह्मज्ञान रूपी प्रकाश से आलोकित कर देता है तो इस प्रकार भ्रम एवं अज्ञानता स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं।

मन तू जोत सरूप है, अपणा मूल पछाण। मन हरि जी तेरे नाल है, गुरमति रंग माण।

ब्रह्मज्ञान से पहले, हमारे इस मन पर भ्रमों एवं अज्ञानता का साम्राज्य होता है जोकि तथाकथित पंडित, मौलवी, तांत्रिक एवं चोलाधारी फकीर की विकृत सोंच एवं पाखण्ड का नतीजा है, यह संसार में इतना डर व्याप्त कर देते हैं अनिष्ट होने का, झूठमूठ का दैवीय डर और तरह तरह के कई भ्रम। इन सबके समाधान हेतु तरह तरह के अनुष्ठान, पूजा-पाठ, तंत्र-मंत्र, क्रिया-कर्म एवं पाखण्ड, जिनके डर या अनिष्ट की आशंका से हर कोई सहजता से निभाता चला जाता है और इसके अलावा कुछ और सोंच ही नहीं सकता। यही कारण है कि शहनशाह बाबा अवतार सिंह जी महाराज ने सम्पूर्ण अवतार वाणी शब्द 8 में इन्हीं कुरीतियों का ज़िक्र किया है:

शरह दे कायल जावर हाकम, रज रज वैर कमांदे रहे।
कोज़ी पंडत अन्हे आगू, रज रज फ़तवे लांदे रहे।
आये दी ते कदर न जाणन, दीवे बालण मढ़ियां ते।
कहे अवतार अड़े ने मूरख, अज वी ओहनां अड़ियां ते।


जब पूर्ण सत्गुरू की कृपा होती है तभी इन भरमों एवं अज्ञानता का नाश सम्भव है,
गुरु बिन ज्ञान न होइ। गुरू तत्वदर्शन कराके वास्तविकता के साथ जोड़ देता है और निरन्तर सेवा, सिमरन एवं सत्संग अभ्यास में लाने से सारी अज्ञानता एवं भ्रमों का क्षरण यानी नाश हो जाता है और यह मन ब्रह्ममय हो जाता है, 
ऊठत बैठत हरि भजो, साधु संग प्रीति। नानक दुरमति छुट गई, पारब्रह्म बसे चीति या फिर भजो पारब्रह्म, तजो सभ भ्रम।


 इस तरह हमारे इस मन पर इस निरंकार का एकछत्र अधिकार हो जाता है। ज्ञानी महापुरुष पूर्ण सत्गुरू की असलियत से वाक़िफ़ होते हैं जबकि अज्ञानता एवं भरमों में डूबे पाखण्डी गुरू की महत्ता को संसार के सामने प्रस्तुत ही नहीं करते हैं या फिर नकारात्मकता के साथ पेश करते हैं और अपनी तूती का ही शंखनाद सुनना पसंद करते हैं एवं व्यर्थ ही शोर मचाते रहते हैं। गुरू की महत्ता का एवं पाखंडियों के आडम्बर को शहनशाह जी ने
सम्पूर्ण अवतार वाणी शब्द 89 के माध्यम से सच्चाई कुछ इस तरह बयां की है:

ज्ञान दी गुडडी दी अज तीकण, सत्गुरू दे हथ डोर रही।
अवतार कहे पर अन्ही दुनियां, ऐवें पांदी शोर रही।

सन्त महात्मा हमेशा ही पाखंडों एवं आडम्बरों से दूर रहते हुए, निर्लेप जीवन व्यतीत किया है और इस संसार जोकि संशय में है शंकित है भ्रमों में, उन्हें भी भ्रमों एवं अज्ञानता को हरकर दिव्यज्ञान के प्रकाश से आलोकित किया है। शहनशाह जी ने पूर्ण सत्गुरू की अवस्था का चित्रण 
सम्पूर्ण अवतार वाणी शब्द 146 में कुछ इस प्रकार किया है:

फुल जिवें परवाह नहीं करदा, नाल खलोते खारां दी।
परवाह नहीं करदे भगत हरि दे, एदां दुनियादारां दी।

मन को पूर्ण सत्गुरू द्वारा ब्रह्मज्ञान से आलोकित करके सही दिशा देने पर ही सारे ही भ्रमों की समाप्ति सम्भव है।

त्रुटि सम्भव है, बख्श लेना जी,
आप जी के पावन पवित्र चरणों में दास का कोटि कोटि प्यार भरा 
🙏धन निरंकार जी।🙏


🙏महापुरुषों जी नीचे कमेंट में धन निरंकार जी जरूर लिखें🙏

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