Nirankari Vichar. निरंकारी विचार "कहे अवतार जे आप यह चाहे, तां कोई एहनूं वेख सके"


Nirankari Vichar. निरंकारी विचार "कहे अवतार जे आप यह चाहे, तां कोई एहनूं वेख सके"

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Nirankari Baba Hardev Singh Ji Maharaj

इस चराचर जगत में जितनी भी क्रियाएं होती हुई दिख रही हैं, वो पूर्ण नियोजित हैं, बेहद करीने से संचालित हो रही हैं। एक बेहद छोटे से सूक्ष्म अवयव से लेकर विशालतम खण्ड या जीव इस विधि विधान में पूर्णतः समर्पित हैं। क्या मजाल है कि एक ज़र्रा या कतरा भी इधर से उधर हो जाए।

तेरी कृपा के बिना, हे मंगल मूरत मूल।
पत्ता तक हिलता नहीं, खिले नहीं इक फूल।

जितनी भी जैविक, रसायनिक, भौतिक या अन्य किसी प्रकार की क्रियाएं, ये सारी ही अलौकिकता से परिपूर्ण हैं और निरंकार के अलावा कोई इनमें किसी प्रकार का खलल या व्यवधान नहीं डाल सकता है।
एकमात्र समरथ सत्ता यह निरंकार जिसके इशारे मात्र से सारे ही निर्माण-विनाश, जन्म-मृत्यु, संघटन-विघटन, सृजन या फिर प्रलय होते चले जा रहे हैं।

तेरा इक इशारा पाके, बण गए आलम सारे ने।
तेरा इक इशारा पाके, फुट्टे जल दे धारे ने।

अब यदि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अवलोकन करें, नजर डालें तो *यह सब कुछ भी हम केवल तत्वदर्शन या ब्रह्मज्ञान के उपरांत ही बेहद सहजता से महसूस कर सकते हैं कि यह तत्वदर्शन या ब्रह्मज्ञान भी इस निरंकार की कृपादृष्टि का ही फल है*, अन्यथा कितने सारे ही मानव हैं इस संसार में जिन्हें इस तत्वदर्शन या ब्रह्मज्ञान का प्रसाद प्राप्त नहीं हो पाया है और यह अवस्था तब है जबकि यह तत्वदर्शी, तत्ववेत्ता पूर्ण सत्गुरू द्वारा समस्त विश्व में कल्याणकारी यात्राओं के रूप में आवाज़ लगवा है।

आओ रब दे दर्शन कर लओ, सन्देशा सभ इंसानां नूं।
मुरशद पेआ बन्दा बणाए, मेरे जहे हैवानां नूं।

Nirankari Vichar, निरंकारी विचार


यह आवाज़ भी इसलिए कि आगे धर्मराज जोकि कर्मों का लेखा जोखा करते हैं वो भी पूछते हैं कि क्या किसी तत्वदर्शी सत्गुरू की आवाज़ नहीं सुनी, तो जवाब होता है कि आवाज़ तो अवश्य ही सुनी लेकिन कदम ही नहीं बढ़ाए उस आवाज़ की ओर, इस प्रकार लख चौरासी योनियों का रूपांतरण भी बेहद सहज तरीके से संचालित हो रहा है। अतः

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तीन लोक नवखण्ड में, गुरू से बड़ा न कोय।
कर्ता करे न कर सके, गुरू चाहें सो होय।

निरंकार स्वयं ही गुरू के रूप में खुद को अवतरित करके सभी मानवमात्र को अलौकिकता एवं दिव्यता प्रदान कर रहा है। यह इसकी अपनी रजा है, मर्जी है।

ज्ञान प्रकाश्या गुरू मिलया, जे ना बीसरि जाई।
जब गोविंद कृपा करी, तब कहिं मिलया आई।

दास भी २-३ दिनों से मिले इस बेहद महत्वपूर्ण शीर्षक पर लिखने का निरन्तर प्रयास कर रहा था लेकिन यह भी कृपा इसी सत्गुरू दातार की है जो यह लेखन सम्भव हो पाया। *मेरा निजी प्रयास निष्फल रहा।

इसकी कृपा से ही यह अध्यात्म भी फल-फूल रहा है और हरपल ही आनन्दित हो रहे हैं इसकी अलौकिकता एवं दिव्यता का रुहानियत अवलोकन करके।
अंत में यही अरदास है सत्गुरू माताजी से कि मेरी तेरे चरणां नाल तोड़ निभ जाए, *हथ जोड़ करां अरदास माताजी, म्हारी तोड़ निभ जाए।*
शुकर दातयां... तेरा लखां बार।

🌹बख्श लेना बख्शनहार🌹
🙏🌹आप जी के पावन पवित्र चरणों में दास का कोटि कोटि प्यार भरा धन निरंकार जी 🌹🙏

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