Nirankari Vichar. निरंकारी विचार || संतोष से संतुष्ट इंसान
Nirankari Vichar. निरंकारी विचार, संतोष से संतुष्ट इंसान
निरंकारी विचार |
अपने काम से छुट्टी ना करने वाला एक इंसान, अचानक गैर हाजिर हो गया। मालिक ने यह देख कर, उस की तनख्वाह बढ़ा दी, की यह यहां से कही और जगह ना चला जाए। और आगे से भी यह काम से ज्यादा छुट्टी भी नहीं करे। उस आदमी ने बढ़ी हुई तनख्वाह का चेक चुपचाप अपने मालिक से पकड़ लिया। और कुछ महीने बाद छुट्टी भी कर ली।
उसकी दोबारा छुट्टी करने से, इस बार नाराज हो के मालिक ने, पिछली बार बढ़ाई हुई तनख्वाह, इसलिए कम कर दी। कि यह तो बड़ा ढीठ आदमी है, इसे मेरे किए हुए की कोई कदर नहीं। इस बार भी वह आदमी कुछ नहीं बोला। और अपने मालिक से घटी हुई तनख्वाह का चैक पकड़ कर चुपचाप वहां से चल पड़ा। हैरान-परेशान मालिक ने पीछे से अवाज मार कर उसे रोक लिया और उस से पूछने लगा।
"भाई तू ना बढ़ी हुई तनख्वाह पर बोला, और ना कम हुई तनख्वाह पर बोला" आखिर यह चक्कर क्या है। वह एकदम चुप रहा, और फिर "कहने लगा मालिक जब पिछली बार मेरी तनख्वाह बढ़ी थी। तो मेरे घर एक बेटा पैदा हुआ था। मैंने सोचा कि जीण जोगा अपने हिस्से का साथ ही लेकर आया है। अब जब मेरी मां चोला छोड़ गई, तो तनख्वाह भी मेरी कम हो गई। मैंने सोचा कि करमां वाली अपने हिस्से का अपने साथ ही ले गई।
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जब मेरे परिवार के जिबो का हिसाब किताब वह, परमात्मा अपने आप खुद रख रहा है। तो मुझे मेरी कम हुई तनख्वाह से परेशान, या फिर बढ़ी हुई, तनख्वाह से खुश होने की क्या जरूरत है। मैंने तो इस में भी उस खुदा, परमात्मा की मर्जी समझी है! की जो वह कर रहा है, ठीक ही कर रहा है। सो अगर हम इस सोच को अपना ले, की जो हमने जिंदगी में कमाया, वह उस सच्चे परमात्मा की मेहरबानी है। और जो हमने गवाया है, वह भी सच्चे परमात्मा की कदर दानी है। तब हमारी जिंदगी मैं बिना मतलब के झंझट या टेंशने, अपने आप ही खतम हो जाएंगी। क्योंकि संतोष से संतुष्ट इंसान परमात्मा से जरूरत से बढ़कर मांगता नहीं। और परमात्मा भी उस की जरूरत से कम कभी उसे देता नहीं।
जो इंसान परमात्मा कि रजा मैं रहता है, वह हमेशा ही खुश रहता है। उसे विश्वास होता है, कि जो परमात्मा करेगा, या फिर उसे देगा उस के लिए काफी होगा। उसे अपने परमात्मा पर पूरा विश्वास होता है, कि जो वह करेगा उस के लिए अच्छा होगा। *अगर ऐसी सोच हम भी अपनी जिंदगी में अपना ले, तो हमारी जिंदगी भी खुशहाल हो जाएगी। हमे कभी कोई दुख आएगा ही नही, बात है तो एक विश्वास की है।"हमे सच्चा सहारा एक परमात्मा का ही है। जो हमेशा हमारा साथ देगा। बाकी सब सहारे एक ना एक दिन हमे छोड़ जाऐंगे। इस लिए अभी से ही भजन सिमरन द्वारा ईश्वर से निकटता का संबंध बनाएं। परमात्मा ही अंत समय हमारे साथ रहेगे, और कोई नही।*
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मन के हारे हार ने मन के जीत जीत है। कहे कबीर हरि पाइए मन ही पर अनन्त हरि।
अर्थ: जीवन में जय और पराजय केवल मन की भावनायो से है। प्रिय मनुष्य मन में हार गए, निराश हो गए, तो पराजय है। और यदि उस ने मन को जीत लिया, तो वह जीत गया है। ईश्वर को भी हम मन के विश्वास से ही पा सकते हैं। यदि प्राप्ति का भरोसा ही नहीं तो कैसे होगा?
महापुरुषों जी नीचे कमेंट में धन निरंकार जी जरूर लिखें
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